section): लड़प्पन के दिन भी क्या दिन थे?

लड़प्पन के दिन भी क्या दिन थे?

लड़प्पन के दिन भी क्या दिन थे?

बड़ा ही निर्मल वाले दिने थे,राहों में भी बचपन की अगल ही अंदाज थे,ज़िंदगी का दौर नही था खुशियों की बरसात थी पल-पल की डोर में ज़िंदगी जीते थे,नंगे कदम कही ठहरते नही थे,ज़िंदगी की राह कभी टूटती नही थी,सुबह अकेला, नींद धकेला होता था उन दिने की हवा भी खुशियों का चादर बन जाती थी,हमारे जीवन में खुशियाँ का कितना भी दौर आ जायेगा,लेकिन बचपन की दौर कभी लौटकर नही आयेगी,शायद वह वक्त ज़िंदगी का आखिरी वक्त होता होगा,धीरे-धीरे वह वक्त भी फीका पड़ जाता हैं तभी तो ज़िंदगी की खुशियाँ भी नीचा ढल जाता हैं,हमारे दिल में कही बार बचपन की दौर को दोहरता हैं ज़िंदगी के हर मोड़ हम लोगों को याद आता हैं,अब का पल तो मजबूरियों में ही डूब जाता हैं

बचपन का दौर क्या था मैं बताता हूँ आपको

बचपन का दौर नही,मुक्ति का छोर था,इसलिए उस वक्त में किसी तरह का तनाव नही था खेलते-खेलते तो ज़माना गुजर जाता था लेकिन वैसी जिंदगी कभी लौटकर नही आती थी,सुकून की राह तो बचपन का दौर ही देती हैं,परन्तु उस पल तो ज़िंदगी की शुरुआत मानी जाती हैं लेकिन शरीर जैसे-जैसे वक्त बढ़ता जाता हैं, वैसे-वैसे की शुरुआत भी घटती रहती हैं,उस पल की सभी यादें हम लोगों की ज़िंदगी में कही ना कही जुड़ती होती हैं,इसलिए समस्त इंसान सब कुछ भूल सकता हैं लेकिन ज़िंदगी वापिस कभी ऐसा दौर नही लाता हैं सभी का पल बड़ा ही सुहाना होता हैं ज़िंदगी की तमन्ना रवाना होता हैं इसलिए कहता हूँ ज़िंदगी कुछ पल निकालकर
बचपन के दौर में आ जाते हैं,चाहे वे कुछ क्षण का ही याद क्यों ना?

बचपन की याद तड़पाती हैं ज़िंदगी को

कुछ मनुष्य को ज़िंदगी में कभी भी आराम नही मिलता हैं, क्योंकि उनका वक्त बड़ा ही कठिन चलता हैं
बीते यादों में ही बचपन की दौर आती हैं शायद उनके मन को तोड़ा सा सुकून मिल जाता होगा,
उनकी ज़िंदगी की छाया किसी जहर से कम नही होता होगा,फिर भी ज़िंदगी की मजबूरियों के सामने उनके घुटने टेक देते हैं,जिनको बचपन का दौर नही मिलता होगा|






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