section): ज़िंदगी जीना क्यों छोड़ देते हम लोग?

ज़िंदगी जीना क्यों छोड़ देते हम लोग?

 

साथ रहना छोड़ दिये हम लोगों ने 

जब से मोबाईल युग का दौर आया है उस समय से लोग एक दूसरे से दूर रहना पसंद करते हैं, ऐसा इसलिए करते हैं कि काफी वक्त तो मोबाईल ही चूस लेता हैं तथा ज़िंदगी की प्रक्रिया में मोबाईल भी हिस्सा माँगता हैं,अब का युग ऐसा हो गया हैं कि लोगों के बीच के सम्बन्ध भी टूटने लगे हैं,मोबाईल ने ज़िंदगी बदल दी, लोगों की वक्त ओर तेजी बढ़ रही हैं,परन्तु लोगों की ज़िंदगी उतनी ही तेजी से घट रही हैं,मोबाईल के अन्दर लोग घुस चुके हैं,ज़िंदगी का पल छोड़ चुके हैं लोग,सब कुछ बदल दिया मोबाईल ने रिश्ते-नाते को भी तोड़कर गिरा देता हैं,पास रहने वाला नाता भी धीरे-धीरे खत्म कर देता हैं,क्योंकि मनुष्य का दूसरा रुप मोबाईल कहलाता हैं,लोग ज़िंदगी को भूलकर मोबाईल की जिंदगी में घुस जाते हैं

सोचा ज़िंदगी जी लूँ पर जी नही पाया हूँ

इंटरनेट के ज़माने मुझे इतनी बेचैनी हुई हैं,मुझे बचपन का अपना दौर याद आ गया,उस वक्त की जिंदगी बहुत अच्छा था,लेकिन इंसान के पास आज के युग में वक्त ही नही हैं,इंसान ने ज़िंदगी के पल को इस तरह से बताया हैं कि जीवन नही हैं बन्धन का द्वार लगता हैं,मैं भी जीवन नही जी रहा हूँ,बस ज़िंदगी के पल को काट रहा हूँ,क्योंकि ज़िंदगी जीना उसे कहते हैं जो लोग खुल के जीते हैं किसी प्रकार का कोई बन्धन ना हो,लेकिन ज़िंदगी के पल-पल में खुशियों का लहर लेकर चल रहे हैं हम,ज़िंदगी जीने का अर्थ हैं,ज़िंदगी के पल को काटना नही बल्कि उस पल को जीना हैं खुद का पल किसी के हवाले करना,मतलब उस पल को नौकर के रुप में काम करना,उसी को ज़िंदगी काटना कहते हैं,मैं भी ज़िंदगी काट रहा हूँ,परन्तु ज़िंदगी का उल्लास अपने मन में रखता हूँ ज़िंदगी की तलाश अपने रब में रखता हूँ


विपत्ति को मैंने बड़े करीब देखा हूँ

जीवन के दौर कही बार ज़िंदगी की हालत मेरी लड़कर आयी हैं,अब तो आदत सी हो गयी हैं ज़िंदगी को सहना,ज़िंदगी की खुशी कही बार मेरी ज़िंदगी के द्वार से घूमि हैं,दुख की पुकार मेरी ज़िंदगी में हमेशा बनी रहती हैं इस पल को,मैं शब्दों में उतार देता हूँ क्या पता ज़िंदगी कब नयी मोड़ लेकर आयेगी,मैं इस इच्छा में बैठा हूँ,ज़िंदगी की नयी सवेरा मेरी ज़िंदगी जाकर आये,ज़िंदगी का कदम यूँ ही बढ़ाकर आये,वक्त को यूँ ही पुकार रहा हूँ 


मुरझाये-मुरझाये से चेहरे दिखते हैं मुझे

सभी लोग अपने जीवन की दौर में दुखी जरूर होते हैं लेकिन वक्त के साथ ये पल चलता-रहता,ज़िंदगी की जुदाई ढलता रहता हैं,मेरे चेहरे भी मुरझाये हैं,मेरी जिंदगी भी तन्हाई हैं,मुझे लोगों के चेहरे मुरझाये से दिखते हैं,ज़िंदगी की ताज़गी बनाये से दिखते हैं,हँसी कहाँ गयी ?लोगों की चेहरे से,ज़िंदगी कहाँ ढली लोगों की जिंदगी से,हम सोचते हैं हमारे ही चेहरे मुरझाये से हैं लेकिन हम गलत सोचते हैं,हमारे दुख से भी दुखी लोगों के पास नज़र आती हैं,लेकिन ज़िंदगी की जुदाई हैं अकेलापन आती हैं इसलिए वक्त के साथ ढलते-ढलते लोग भी ढल जाते हैं मेरे भाई









Post a Comment

0 Comments