*ज़िंदगी क्या? बीत जिने पर याद आती है*
कभी-कभी मन भी कही ओर ले जाता है शायद ज़िंदगी के पल से जुड़ता होता है तभी तो मन तड़पता है मनुष्य हर बार मन की अभिलाषा तोड़ देते है इसलिए ज़िंदगी की डगर मोड़ देते है कभी-कभी मैं भी कही दूर चला जाता है ज़िंदगी को जीने के लिये खुले गगन में लहर आता हूँ मन कही बार कहता है कि कुदरत के गरीब रहूँ, शायद ज़िंदगी की मजबूरियाँ है जो चलते कदम को बाँध लेती है उम्मीदों की काया भी रोक लेती है,धीरे-धीरे ये पल गुज़रता ही जा रहा है
ज़माने की आग ढलता ही आ रहा है,लोग जंजाल की दुनिया में इतने अन्धे हो गये है कि ज़िंदगी जीने का पल भी खो देते है वेदना की चादर में खुद को सुला लेते है
*पलभर की अनुभव*
ये सच है समस्त प्राणियों को ज़िंदगी का अनुभव हो ही जाता है क्योंकि समस्त संसार ही कुदरत के अंग कहलते है कुदरत देन है कि हम सब जीवित है कभी भी इंसान को हार नही मानना चाहिए,अगर आप काफी ज्यादा तनाव महसूस करते हो तो कुछ पल के लिए कही दूर चलो जाओ शायद आप को ज़िंदगी क्या? इसका अहसास हो जायेगा,खुद को अकेला महसूस मत करना ,अगर आप खुद को अकेला महसूस करते हो,कुछ पल कुदरत के पास बैठ जाना
शायद ज़िंदगी की उम्मीद जाग जाये
*थोड़ी सी ज़िंदगी है
थोड़ा सा जीना है*
ज़िंदगी की शुरुआत जीने के तरिके से करना क्योंकि ज़िंदगी को लोग मौत मान लेते है ये चीज गलत है हमेशा ही ज़िंदगी की राह में चलना होगा,जब-तब ज़िंदगी ढले तब-तक राह मत जोड़ना,कभी-कभी बातें करा करो,थोड़ा हँसना,खुशियों से झुमना यही तो ज़िंदगी है मेरे दोस्त,मानता हूँ की ज़िंदगी संकट आना-जाना लगा रहता है परन्तु वक्त के साथ धीरे-धीरे सब कुछ ढल जाता है जिन्दगी का अंग ही है जिम्मेदारियाँ इसलिए जो गरीब घर के लोग होते है समस्त जीवन अपने परिवार के लिए काम करने बीता देते है उनकी भी ज़िंदगी में काफी अभिलाषा रहमी है पर क्या? करे ज़िंदगी को जी नही पाते है शायद इसलिए की उनके परिवार की व्यवस्था सही ढंग से हो सके
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